Monday, October 18, 2010

किसकी माँ है ये, कौन यशवंत, क्या हुआ भैया?फिर एनकाउन्टर क्या?


कई दिनों से नुक्कड़ गया नहीं आज गया तो पता चला, शोर शराबे में इतना ही सुना, किसकी माँ है ये, कौन यशवंत, क्या हुआ भैया, फिर एनकाउन्टर क्या?आते ही मेल खोला तो प्रेम प्रकाश को आइना पकडे देखा "मीडिया को आइना दिखाने वाला आईपीएस"Saturday, 16 October 2010 13:03 और फिर माँ के बारे में पढ़ा "क्योंकि वो मायावती की नहीं, मेरी मां हैं" Saturday, 16 October 2010 16:४९ सारा माजरा समझा तो   रह नहीं पाया सोचा सब काम छोड़ो, पहले इसे निबटाना जरुरी है, वर्ना दिमाग यहीं अटका रहेगा ...

मैं तो कहूँगा धिक्कार है... प्रशासन को, पुलिस को, मूकदर्शक बने ये प्रकरण देखने वालों को, यशवंत को और स्वयं को भी, और उन सबको भी जो यहाँ इसे सिर्फ पढेंगे, प्रतिक्रिया "बार" में बैठ कर ही देंगे, जो सुबह होते ही "खुमार" के साथ विलीन हो जाती है या सर दर्द बन कर डिस्प्रिन की गोली में घुल जाती है!!!
प्रेम प्रकाश के बारे में लेख पठने के बाद, सोचा, एस एम एस करूँ, फ़ोन करूँ, मेल करूँ या फिर सीधे कमेन्ट बॉक्स में लिखूं कि पगला गए हैं, कामरेड यशवंत, आईने को कौन आईना दिखायेगा भला? जाने कितने प्रकाश, अन्धकार की भेंट चढ़ चुके, ये प्रेम प्रकाश क्या बेचते हैं? "सैकड़ों" नहीं अनगिनत "शराब व अन्य" माफियाओं की गाड़ियाँ पूरी सुरक्षा से सही "ठीयों" पर पहुँचाने वाले, बिना विवेकहीन,"लिख लोढ़ा-पढ़ पत्थर" सिर्फ कुछ लम्बे और कुछ मोटे और सरकारी लबादे में लिपटे हमारे ये भोंदू भाई, या दूसरे थोड़े पढ़े लिखे भैया, जो किसी परीक्षा (आई ए एस, आई पी एस ) के तहत इनके ऊपर "साहब" बनकर आये हैं, एक अनपढ़ या फिर पढ़े लिखे अनपढ़ नेता की चाटुकारिता करने,वो, फिर विचार त्याग दिया. सोचा पता नहीं दोस्त तुम समझ सको या नहीं. खैर अब स्थिति इससे उलट है. इसलिए पूछना चाहता हूँ, किनसे न्याय की उम्मीद लगा रहे हो? जिनका काम करने का बुनियादी तरीका ही अन्याय की हदों को पार कर काम को अंजाम देना है, और फिर लीपापोती करने के लिए और अन्याय करना ?उनसे ???
सवाल और भी हैं...जवाब जब भी मिलें देना...
1. क्या ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी ग्रामीण महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है?
2. क्या पहली बार एक ईमानदार बेटा, अपनी जननी के आत्मसम्मान की रक्षा न कर पाने की विवशता में मानसिक उद्दिग्नता की हदों को पार कर, पैसा, ताकत न कमाने का अफ़सोस प्रगट कर रहा है?
3. यदि यशवंत सरीखे जुझारू, ईमानदार और व्यवस्था में विस्वास रखने वाले व्यक्ति का मानसिक संतुलन सामान्य हदों को पार कर राक्षसों से दो दो हाथ करने को प्रेरित हो सकता है तो फिर वो कैसे  गलत हैं, जिनके घरों में घुस कर व्यवस्था के ये 
ताकत में अंधे "रावण और दुस्सासन" चीर हरण का नंगा नाच करते हैं और वे बीहड़ों में रहकर इस आतंक का पाने तरीके से सामना करने का जोखिम उठाने को मजबूर हो जाते हैं? 
4. क्या ऐसा पहली बार है की व्यवस्था को न्याय की गुहार लगाती हुई कोई चिट्ठी प्रकाशित हुई है?
5. क्या सोनिया गांधी से लेकर मायावती जैसी तमाम महिलायें इस 
तरीके अत्याचार से अभी तक बिलकुल अनभिज्ञ हैं, की यशवंत बताएँगे और सब ठीक हो जायेगा?
6. असली दोषी कौन है? नंदगंज थाने के थानेदार इलाके के सर्किल आफिसर, पुलिस कप्तान , आईजी, डीजीपी या सीएम या फिर ये मुट्ठी भर आतंकी? या फिर हम, जो बहुसंख्यक भी हैं. और (शायद) प्रबुद्ध भी, जो भेड़ चाल चल रहे हैं, और ऐसे मौकों पर संवेदना प्रगट कर, कर्त्तव्य की इतिश्री करते हैं, की कौन सा मेरी माँ है?
7. क्या हममें से कोई भी जिसकी माँ या परिवार के किसी भी सदस्य के साथ ऐसा अमर्यादित व्यवहार होगा, वो तकरीबन हर एक "कमाऊ" चौराहे पर तैनात "उगाही नायकों" के नाम से प्रचलित, इन सरकारी गुंडों को सीधी आँख देखना पसंद करेगा ?
8. क्या इस अंधेर नगरी के चौपट राजा के अमानवीय राज का कोई अंत है?
9. क्या वाकई में हम तैयार हैं, इस वर्दीधारी आतंक का सामना करने के लिए?
10. क्या वो वाकई हमसे बेहतर नहीं जो "फर्जी एनकाउन्टर" हो चुके हैं,
और अपने जानने वालों के आगे कम से कम रोज-रोज तो अपनी इज्ज़त का वास्तविक एनकाउन्टर नहीं करवाते ?
यदि नहीं तो फिर क्यों अमलेंदु भाई, प्रशांत गुप्ता, नरेश कादयान और सुनीता भट्ट सरीखे मुट्ठी भर लोगों को छोड़ कर कोई भी सामने आकर http://medianukkad.blogspot.com/ उस मुहिम का हिस्सा नहीं बन पाया, जो ऐसे ही एक आतंक का जवाब देने के लिए एक "वर्चुअल युद्ध" का आगाज था, वर्दीधारी गुंडों के खिलाफ.५०० से अधिक मीडिया दिग्गजों का आवाहन किया गया, और उनसे वन टू वन "चैटियाया" भी गया, कौन हेम,अच्छा हाँ गए तो थे श्रद्धांजलि देने, अब और क्या, कहाँ चक्कर में पड़े हो यार, और क्या चल रहा है, आजकल कहाँ, कब मिल रहे हो, "वगैरह-वगैरह" बातों पर पिंड छुड़ान हुआ.
हम सिर्फ श्रद्धांजलि सभाओं में जाने के अभ्यस्त हो चुके हैं, जहाँ की हम नामजद नहीं होते, ठोस प्रतिक्रिया में वक़्त जाया करना तो दूर, ब्लॉग तक फ़ॉलो करने में भी (अल आई यू) में नामजद हो जाने का खतरा है, फिर गुमनामी के अपने मजे हैं, या फिर एक चैनल में नाम कमाने के भी, पता नहीं कब कौन सी पार्टी का ख़ास बनने का मौका छोड़ना पड़े?
हिन्जदों की भी फ़ौज बन सकती है, पर ध्यान रखना, कल फ़ोन करोगे आने के लिए तो कोई मेरठ कोई बरौत और कोई बागपत होगा, बनारस, गाजीपुर वाले भी. कई बार ढूँढो तो नहीं मिल पाते.
मैं भी शायद न ही आ पाऊँ, बल्कि मान लो आऊंगा ही नहीं, "अपने-अपने" युद्ध हैं मेरा भी एक जारी है, हाँ फौजी इकठ्ठा करने का एक सुझाव है एक "गेट टुगेदर" रखो, बाद में खाने का भी आयोजन रखना कम से कम "नमक" "खा-पी" कर हरामखोरी का जमाना अभी पूरी तरह नहीं आया.
और हाँ अंत में एक बात और तुम्हारी स्थति ऐसी है मानों...मैं बरसों पहले खुद को देख कर (जब मैं ये समझा की हम सब जुड़े हुए हैं, एक ही हैं, ये वर्दीवाले हरामखोर और हम सर्वहारा वस्तुतः सहोदर सरीखे ही हैं ) युद्ध स्थल में खड़े अर्जुन से इस मानसिक स्थिति को जोड़ना चाहूँगा...
मेरा गांडीव …मेरे हाथ से गिरा जा रहा है ,मैं इन पर वाण क्या चलाऊंगा ,मैं इस रणभूमि कुरुक्षेत्र को अपने ही वंश की शमशान भूमि नहीं बना सकता केशव, अपने ही वंश की शमशान भूमि नहीं बना सकता.
मै उस राज-सुख का क्या करूँगा जिससे भारत -वंश की लहू की महक आ रही होगी?
पृथ्वी का राज्य तो फिर भी पृथ्वी का राज्य है , मुझे इन दामों त्रिलोक का राज्य भी नहीं चाहिए .
और अंत में…इसका उपाय है …तुम्हारे लिए ही…मनन करना ...
Kutastva kasmalamidam visame samupasthitam|
Anaryajustamasvargyamakirtikaramarjuna
कुतस्त्वा कस्मालामिदम विसमे समुपस्थितम |
अनार्याजुस्तामास्वर्ग्यामाकिर्तिकारामार्जुना
Arjuna, how has this infatuation overtaken you at this odd hour ? It is shunned by noble souls; neither will it bring heaven, nor fame, to you.
हे अर्जुन !तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति प्रदान करने वाला ही है
ये समय है जब हम सब अपने भीतर के अर्जुन को बोलें "उठो पार्थ गांडीव संभालो, और दुर्योधन और शिखंडियों की इस फ़ौज इसके अंजाम तक पहुंचाओं, "जननी" से पूज्य कौन है भला? क्या हुआ जो इसमे तुम्हारे सामने कई प्रतिष्ठित आचार्य द्रोण, कुलगुरु कृपाचार्य, और स्वयं न्याय के प्रतीक चिन्ह सरीखे भीष्म पितामह हैं, वास्तव में तो ये शकुनियों की जमात के पीछे खड़े दुर्योधनों के निहित स्वार्थों के लिए लड़ा जा रहा छदम युद्ध भर ही है!!!
मैं तुम्हारे साथ हूँ, शस्त्र विहीन तो क्या, ये समस्त जगत मेरी छाया मात्र ही तो है, मेरे प्रकाश से प्रकाशित हो दिखने वाला, और मेरे प्रकाश की अनुपस्थिति में विलुप्त हो जाने वाला.
"ये बाजी इश्क की बाजी है, जो चाहे लगा लो,
इसमें,हारे भी तो हार नहीं, और जीत गए तो माशा अल्लाह !!!"

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