Saturday, October 23, 2010

"गोरे अंग्रेज चले गए काले आ गए"

Its Just Shocking...

लाठी न खरीद पाए तो लाठियों से पीटा


By looking at above, what comes first to my mind is here for you...
सत्ता मद जब तक रहे, तब तक राजा मत्त
सत्ता मद कब तक रहे, जानेहूँ जन सर्वत्र !!!
इक दिन सत्ता जाइहै, उड़ जाइहै अनुराग
सत्ता रावन को न रहै, रीत यही,यही राग !!!
सत्ता मद में चूर है राजा, थानेदार
मद उतरैं पर जानिहैं,जनम बिफल, बेकार !!!
क्यों कर जन दुखी भयें, काहे करिए रार,
जब जब रावण देखियो, मरिहो जूता चार !!!
मरिहो जूता चार, ना छोड़ो मद मत्त
जनम सुधारन रीत है, करिहै सब सर्वत्र !!!
लाठी उसी के हाथ में, जिसके रहिये जोर,
लाठी रखिये थाम के पकड़ ना पावें चोर!!!
Must not we forget, ever, fault is ours, if we have chosen all frauds for holding the key positions in administration as leaders and executers. Be at-least cautious for future, not just make your kids and surrounding Literate, Highly educated but also Aware & Empathetic to avoid such foolish situation in the times to come, and juts think...being rationale...
चार वर्दीवाले गुंडे सैकड़ों लोगों पर हावी हो जाते हैं कैसे? क्या लोगों को तमाशा देखते रहेने की आदत नहीं हो गयी है , यही कारण है की जहाँ देखो वहां अंधेर नगरी और चौपट राजाओं का राज दिखाई पड़ता है, चाहे वो जौनपुर का लाठी के जोर पर लाठी खरीदने का मामला हो,थानागद्दी में चौकी प्रभारी और कुछ सिपाहियों की प्रताड़ना के कारण युवक की आत्महत्या हो , या फिर गाजीपुर में औरतों को बंधक बनाये जाने का मामला हो.
क्या सोच रहे हैं हम? एक दिन सुश्री मायावती स्वयं अपने ही कृपापात्र  करमवीरों को इन आलेखों को पढ़ कर पदमुक्त करेंगी या फिर, हम अपनी लड़ाई लड़ने का कोई और माध्यम तलाशना होगा?
क्या न्यायपालिका से ऐसे मामलों में त्वरित न्याय की उम्मीद की जा सकती है? या फिर ये सब मामले इन सबके स्वयं ही रिटायर हो जाने तक मुझे आपको अदालत के चक्कर काटकर और परेशान हो जाने की शुरुआत हैं यदि हमने कानूनी सहायता  का रास्ता अख्तियार किया तो?
समय आ गया है, न केवल इस सब पर एक स्वस्थ बहस का बल्कि आकलन करने का की अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच अपने ही लोगों से जलालत, जहालत के इन प्रकरणों का क्या उपाय है?
अच्छा होता यदि इनकी जगह अंग्रेज होते कम से कम सशस्त्र संघर्ष की गुंजाइश तो थी,tit for tat can be followed without any hitch or second thought, ऐसे में भगत सिंह का कथन याद आता है "गोरे अंग्रेज चले जायेंगे काले आ जायेंगे राज करने, शोषण जारी रहेगा," जब तक हम इसे स्वयं नहीं रोकते"
चेत जाओ पार्थ इससे पहले की हमारी गुलामी की ये आदत इन गुंडों को घरों में ले आये अभी तो सडकों पर चलना ही दूभर हुआ है !!!  

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