Thursday, February 17, 2011

"सत श्री अकाल" मनमोहन पाजी





हाल ही में "इंटेलिजेंट सरदार" खुशवंत सिंह ने अपने लेख में "हंसोड़ सरदार" नवजोत सिंह सिद्धू को जोकर बताते हुए सिख सम्प्रदाय की महिमा को कम करने वाला बताया, ऐसे में इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मीडिया नुक्कड़ पर चर्चा चल पड़ी "भ्रष्ट (सरकार के मुखिया) सरदार" प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की...

मनमोहन सिंह जिनका आंकलन अपने बेबाक नजरिये और लेखन के लिए, बुढा गए शरीर, और जवान मन के, "वरिष्ठ" और "विवादास्पद लेखक" "खुशवंत सिंह" ने "शायद" इसलिए छोड़ दिया की "नई दिल्ली" में उनका "बचा खुचा" समय "ठीक ठाक" निकल जाए या फिर प्रौढ़ावस्था से जूझते दिमाग में ये बात आई ही न हो की जो (पूरी कांग्रेस पार्टी, सहयोगियों, वोटरों और सोनिया जी के )मन को मोह लेता है, "मनमोहन" है जो, उसका आंकलन क्या और क्यों कर करना...

खैर...हम तो हस्तिनापुर के सिंहासन से बंधे "बूढ़े" और "भ्रष्ट" "राजा" "रानी" और दुर्योधनों के "दुष्ट" आचरणों के आगे "कमजोर" "अक्षम" प्रतीत होते भीष्म पितामहों , द्रोनाचार्यों, और क्रपाचार्यों  के साथ सम्पूर्ण दुर्योधनी सेना  के "आडम्बरी मोहपाश" से "मीडिया नुक्कड़" की चौपाल पर "दिव्य द्रष्टि के अभिशाप" को झेल और झिला रहे संजय" के साथ चाय की प्याली की पहली चुस्की की "सुर्र"..पर ही मुक्त हो गए थे...

बची खुची कसर हमारे बेहूदा सवाल पर मिले जवाब ने पूरी कर दी...

"संजय भाई "चाय" आज तो मौसम ठंडा है "रम" होनी चाहिए?

बोले लानत भेजो "मौसम" "शौक" और "तलब" को एक ही कौम बची थी लड़ाकू और ईमानदार, ये देश गड्ढे में जा रहा है तुम "ठंडे-गरम" से ऊपर नहीं उठ पा रहे, सरदार होकर ये हाल है?

हमने कहा भाई क्या हुआ, किसी सरदार से भिड़ लिए या फिर (दिव्य चक्षु के अभिशाप से ग्रसित) चौरासी (1984)में पहुँच गए...बोले "सोफी" में हैं यार...और मानों वो सोफी में हैं इसमें सरकार या फिर उसके नुमाइन्दगो की कोई चाल हो, नॉन स्टॉप शुरू हो गए...

"शर्म आती है ये सोच कर की वर्तमान प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह उस महान जुझारू और आध्यात्मिक पीढ़ी के वंशज हैं, जिसका गठन प्रत्येक परिवार से एक "पुरूष" लेकर समाज, धर्म, और आदर्शों की "दुराग्रही आतताइयों" से रक्षा के लिए किया गया,वो महान कौम जिसने "सत श्री अकाल" का उदघोष किया."

हम थोडा गंभीर हुए पुछा "भाई क्या हो गया, फिर कोई नया घोटाला हो गया क्या ? "इसरो" वाले तक तो पता चला था ?

संजय भाई फट पड़े...शब्द भी गलत हाथों में भटक जाते हैं... 

"सत श्री अकाल" जो की वर्तमान समय में सिर्फ एक "नमस्कार सूचक शब्द" या फिर एक पंथ विशेष के लिए "नारा" मात्र बन गया है, जिसका वास्तविक अर्थ "सत्य के कालातीत" होने की तरफ किया एक इशारा एवं सूत्र है, जिससे न केवल पंथ विशेष, वरन सम्पूर्ण मानव जाति "सत" जो की एक आदर्श आचरण है, उसे भूल न जाए इसका निमित्त मात्र है.

सरदार मनमोहन सिंह के कार्यकाल में छाए हजारों करोड़ के घोटालों मसलन टू-जी स्पेक्ट्रुमएस बैंड आवंटन घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला, विदेशों में जमा खरबों रुपयों के काले धन को स्वदेश लाने में अक्षमता, कॉमनवेल्थ में हुआ घोटाला, ताजा "इसरो" विवाद और इन सबके बाद उनके उलटे सीधे बयानों पर नजर डालें तो लगता है की एक "अलग पंथ" का निर्माण होने वाला है, जिसका उदघोष होगा "असत श्री अकाल

ऊपर से कहते हैं की राजा ने 'पारदर्शिता का वादा" किया था, राजा 'द्रमुक" की पसंद, मैं उन पर कुछ तय करने की स्थिति में नहीं था-एक 'अक्षम" "कुसासन" की तरफ इशारा करता है-अतः उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.

हमने कहा की भाई प्रधानमंत्री जी का ये कहना है की "ये बात गलत है की मैं (जांच के लिए) जे पी सी  (Joint Prliyamentry Committee) गठन की प्रक्रिया को रोक रहा हूँ, क्योंकि इसके समक्ष पेश होने से डर रहा हूँ . प्रधानमंत्री के रूप में मेरे आचरण पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए"

शर्लाक होम्स की तरह सर खुजा कर बोले बस यही बात तो मूलतः इशारा करती है की उनकी अपने आप को पाक साफ़ कहने की कोशिश नाकाम है, बेहतर होता की वे अपनी नैतिक जिम्मेदारी से बचने के बजाय अपनी जिम्मेदारी को कबूल करते.

पर भाई तुमने सुना नहीं वे बोले हैं की "कई चीजें मेरे मन के मुताबिक़ नहीं पर मैं जीवन को सीख की लम्बी प्रक्रिया मानता हूँ, कभी इस्तीफे की नहीं सोची 

"संजय बोले तुम "बुडबक" ही रहोगे-ये बयान न केवल उनकी कुर्सी पर काबिज रहने की "बदनीयती" को दर्शाता है बल्कि उन्हें एक योग्य प्रधानमंत्री के बजाय एक "अयोग्य" नौसिखिया, बार बार कई मुद्दों (विषयों)में फेल "विद्यार्थी" की उपमा देने को मजबूर करता है जब की वे वास्तव में कई विश्वविद्यालयों की "मानद उपाधियों" और "अर्जित डिग्रियों" से सुशोभित हैं???मैं तो कहता हूँ इससे पहले की "नकली डिग्री घोटाला" भी इनके खाते में जाये और "कौम की और बदनामी हो" इस्तीफ़ा दे देना चाहिए... 

आखिर सीखने के लिए जनता के धन का दोहन, देश की आर्थिक क्षमता का शोषण कब तक होता रहेगा, जब तक की सरदार मनमोहन सिंह, अपनी अक्षमता के चलते एक अयोग्य प्रशासक के रूप में कांग्रेस और उसके सहयोगी गुर्गों (द्रमुक व अन्य) के सहयोग (या असहयोग)से आगे "असत श्री अकाल" को आगे आनी वाली सरकारों और उसके नुमाइन्दगो का जीवन दर्शन नहीं बना लेते?

हमने कहा मियां नाहक दुखी होते हो "तलब" मिटी नहीं तो सरकार गिराने पर लग गए, चलो हम एक पव्वा दिलवा देते हैं...और संजय भाई उखड गए...बोले तुम्हें पीने की लगी है... 

अगर पिछले कुछ समय में प्रधानमंत्री और उनके परम सहयोगियों "कृषि मंत्री" और "वित्त मंत्री" के बयानों पर यदि गौर किया जाए तो "हैरानी और शर्म" दोनों से निजात मिल जाए पूरे मुल्क का ..."नशा" काफूर हो जाए 

अगर एक बात गौर से समझें की क्यों हर दूसरे महीने "औसतन पांच-दस रुपये" "तकरीबन हर चीज पर" बढ़ जाते हैं??? कभी प्याज-टमाटर, कभी चीनी, कभी गैस, कभी दारु, और कभी पेट्रोल...हमने कहा विपक्ष का षड़यंत्र है, पडोसी मुल्कों की चाल है...

बस बिफर गए और बोले पाकिस्तान में पेट्रोल १७ रुपये लीटर है और इंडिया में ७०, हमने कहा भाई "स्पीड " या "पॉवर" लेते हो क्या? बोले बुढा गए पर मजाक की आदत नहीं गयी... है तो 60 पर पूरा देते कहाँ है साले !!!

फिर झल्ला कर बोले लानत भेजो पेट्रोल को, हमेशा की तरह जैसी तुम्हारी आदत है "मुद्दे से भटका दोगे" हमें, और फिर "आरुषी मर्डर" या फिर "ये साली जिंदगी" पर बात करने लगोगे...बोलोगे हमारे तो गले में ही छेद है... और वापस आ गए सरदार मनमोहन सिंह पर...

जानते हो जब महंगाई के पाटों में पिस रही जनता त्राहिमाम कर रही थी तो "कृषि मंत्री" शरद पवार से पूछा गया कि महंगाई कब कम होगी? उनका शर्मसार कर देने वाला जवाब था कि वे कोई "ज्योतिषी" नहीं जो यह बता सकें।

माननीय "प्रधानमन्त्री" ने कहा की -आमदनी बढ़ने के कारण जनता ज्यादा खा रही है, इसलिए महंगाई बढ़ रही है?

और "वित्तमंत्री" ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि वे कोई "जादूगर" नहीं हैं और न ही उनके पास अलादीन का कोई चिराग है?

माना की इस देश का अवाम, उदासीन है पर कब तक, पानी सर से ऊपर आ गया है, कमजोर "प्रधानमन्त्री"  जोकर वित्तमंत्री" और अयोग्य "कृषि मंत्री" के बयानों से स्पष्ट है की, द्रमुक सरीखे "बेईमान दलों के प्रतिनिधित्व" से बनी "वाहियात सरकार" का अंत आ गया है, विपक्ष कमजोर हो सकता है, जनता के इरादे नहीं, इज्जत इसी में है की "नैतिक तौर पर जिम्मेदारी" लेते हुए "इस्तीफ़ा" सौप दें ऐसा न हो की जनता सडकों पर उतर आये और जूतों की माला पहना दे.

और अब इस पर ये ताजा "नौटंकी", "संपादक स्तर के पत्रकारों" को बात-चीत के लिए बुलाकर अपनी अक्षमता, मजबूरी, कमजोरी का नग्न प्रदर्शन और झूठी, भोंडी सफाई के साथ अपने बचाव के लिए घोषणा करना की कुर्सी नहीं छोडूंगा !!! 

प्रधानमंत्री जी अभी तक ये "भ्रम" बना हुआ है की आप "विनम्र" और "मजबूर" हैं, ऐसा न हो की आने वाली पुश्तें "बदनाम" हों 

क्या समझते हैं "बापूजी" की कुर्सी है??? जनता ने दी है,तो जनता ले भी लेगी, आप कौन होते है न छोड़ने वाले ???

ये तो ठीक वही हुआ जैसे पिछले दिनों २ जी वाले मामले में नीरा राडिया और रतन टाटा के साथ दलाली में उजागर वरिष्ट पत्रकारों और उनके संस्थानों ने वीर सांघवी, प्रभु चावला, और बरखा दत्त के साथ "कुछ" संपादकों की मीटिंग बुला दी थी, अमाँ हमारे साथ "मजाक कर रहे हो क्या" सारे के सारे "संपादकों" को "चिरकुटिया बैठकी पत्रकार" समझा है क्या ???

और और तो और भैया हम तो कहेंगे की अँधा-कोढ़ी वाला युग आ गया है...कम से कम महाभारत के जमाने में "अँधा" था, "कोढ़ी" नहीं था...हमने अश्वत्थामा का नाम लिया तो भोहें चढ़ायीं और बोले... 

तुम्हें पता है... अर्णव भाई के भ्रष्टाचार से जुड़े एक सवाल पर प्रधान मंत्री के मीडिया सलाहकार "हरीश खरे" उनके बचाव में खड़े होकर ये बोले की "...You Cant Interrogate The Prime Minister." 

ये है मिसाल "वर्तमान दुराग्रही सत्ता" और "भ्रष्ट, अवसरवादी, चरण वंदना को आतुर मीडिया मैनेजर्स " के उस गठजोड़ की बानगी की, जहाँ "एक अँधा एक कोढ़ी" को सहारा देता है, कौन अँधा, कौन कोढ़ी तुम खुद समझो, सब हम ही बताएँगे, "ध्रतराष्ट्र" हो???

हमने कहा "संजय भाई", हरीश खरे ने तो "आखरी कील" ठोंक दी हैin other words actually (दूसरे शब्दों में वास्तव में) वो कुछ "संपादकों" को "उकसा" रहे थे "प्रधानमंत्री है तो क्या हुआ, लपेट लो, मौका है" मैंने देखा है, एक मोहल्ले में "सांसियों" (एक मूलतः अशान्तिप्रिय कौम) के "लौंडे" ऐसे ही करते थे, जिसको पिटवाना हो उसे लड़ाई छुडवाने के बहाने से पकड़ लेते थे, ताकि वो अच्छे से पिट सके और इस तरह पुरानी दुश्मनी निकाल लेते थे...

ये भी हो सकता है "राहुल भैया" अब "लगभग" तैयार हो चुके हैं,"राम जाने" "सत्ता हस्तांतरण" के इस खेल के लिए हरीश खरे को "आखरी कील" ठोंकने के लिए पटा लिया गया हो? 

"वैसे भी सरदारों के साथ तो कांग्रेस का पुराना छत्तीस का आंकड़ा है "इंदिरा गाँधी, सज्जन सिंह, टाइटलर" सब भूल गए हो क्या...अपने (Daring) "बहादुर" पत्रकार सरदार जरनैल भाई ने तभी तो जूता उछाला था "बेचारे नौकरी से गए" पर कौम को "रेप्रेजेंट" तो किया "मेरे सरदार दोस्त मानते हैं,इसे कहते हैं "सरदार" सिक्खी की शान...

सुनकर थोडा सा मुस्कराए तो हमारी भी जान में जान आई की चलो सोच सोच कर "ब्रेन हैमरेज" तो नहीं होगा? दिव्य द्रष्टि लिए "संजय" काम का आदमी है "मीडिया नुक्कड़" पर, टुन्न बेशक रहे पर "दूर तक" देख लेता है...

थोडा और सुकून पहुंचाने को हमने पूछा अच्छा संजय भाई तुमने तो "महाभारत काल से" इतनी "राजनीति," "कूटनीति" देखी है, "पुराने चावल" होवो भी देखा, जिसे "आँखों वाले अंधे" भी चूक गए थोडा "कौम" की मदद नहीं करोगे?

कम से कम एक उपाय तो सुझाओ, आखिर दुनिया का सबसे ज्यादा डिग्रियां लिया हुआ, "पढ़ा लिखा" "सरदार" प्रधानमन्त्री घोटालों की वजह से इस्तीफ़ा दे, तो क्या अच्छा लगेगा? 

फिर हमारे यहाँ तो लाइन लगी है लोगों की, एक "हुशनी मुबारक" थोड़े ही है की सत्ता पलटी और हो गया काम !!!

Star News से "विजय विद्रोही" वहां देख कर आये हैं...कहते हैं... 
कि लोग सत्ता पलट के धरने के बाद हुई क्षतविक्षत व्यवस्था और मुल्क के "नव निर्माण" के लिए दूसरे मुल्कों से पढ़ाई, नौकरियां और करियर छोड़, वतन आकर शहर की सड़कों पर झाडू, पेड़ों और घास में पानी दे रहे हैं... 

यहाँ ऐसा थोड़े ही होगा...दुकाने लूट ली जाएँगी, "दरिन्दे" "वैमनस्य " भाई मौका जान भाइयों को टायर गले में डाल कर जिन्दा जला देंगे, "गिद्ध नेता" लाशों पर राजनीति करेंगे, गधे सरीखी जनता जो पहले से ही शोषण के चलते "दम" तोड़ रही है, और "शोषित", "कुंठित", और "उदासीन" हो जायेगी, सत्ता "दूसरे दलाल" ले लेंगे, महंगाई और बढ़ेगी...कोई उपाय तो सुझाना ही होगा...मुल्क में रहते हो, तुम्हारा नैतिक दायित्य है ये, गठबंधन की सरकार है प्रधानमन्त्री भी क्या करें, "विनम्र" हैं "मजबूर" हैं, सो जो चाहे सो कह ले कोई...

कुछ सोच कर गंभीर होकर बोले...आजकल सरकारी ठेके ले रहे हो मियां...खैर...ठीक है तो सुनो...अगर दारु थोड़ी सस्ती करवा सको,और हाँ दिल्ली और यू पी में एक रेट, बल्कि हो सके तो "फ्री",या फिर राशन में मिलने वाले गेहूं, चावल मोमबत्तियों की तरह औने पौने दाम,चाहे क्वालिटी थोड़ी हल्की भी रखो ... 

और हाँ इस योजना के लाभ के प्रचार हेतु... तमाम मीडिया में विज्ञापन देकर (विज्ञापन का आर्थिक लाभ शेयर, प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के अलावा "भड़ास" "हस्तक्षेप" और "मीडिया नुक्कड़" सरीखे नए मीडिया को भी दें)...तो "कौम" तो खुश होगी ही...एक तरफ जहाँ अवाम पीकर "टुन्न" रहेगी, दूसरी तरफ मीडिया भी मैनेज हो जाएगा...और झूठी ही सही  "मनमोहनी छवि" बनी रहेगी, जैसा इलेक्शन में होता है मियां...

और जाते जाते एक और नुस्खा दिया ये टाइटल बदल दो "सत श्री अकाल" मनमोहन पाजी नीचे खेद छाप दो "सत श्री अकाल" मनमोहन "पा" जी पढ़ें, अपनी मंसूरी "अनहलक" आदतों से पैदल तो हो ही चुके हो किसी दिन धर लिए जाओगे...फिर अपनी विद्वता से मन ही मन खुश होकर, ठन्डी हो चुकी चाय की एक और जोरदार चुस्की मारी सुर्र...और चिल्लाये छोटू एक चाय और लाना "एक बटा दो" 

हम मन ही मन एक तरफ जहाँ संजय की महाभारती कूटनीति की समझ के निशुल्क प्राप्त ज्ञान से अभिभूत हुए वहीँ दूसरी तरफ "सत श्री अकाल" का सही अर्थ जान कर खुश होते हुए घर की तरफ "बिना लडखडाये" खिसक लिए. क्यों की बस ये एक बात है जो गाहे बगाहे "मोहल्ले और घर" में हमारे "बुद्धिजीवी" होने के लिए छेड़ी जाने वाली चर्चा के लिए मिला उपयुक्त विषय है "बाकि ओटाला, घोटाला तो चलता रहता है, होता रहता है" किसे फिकर है, सब "वेल्ले" थोड़े ही हैं ???

संजय भाई भी "होश" जाते ही भूल जाने वाले हैं. हो सकता है हरीश खरे की जगह "मीडिया सलाहकार" बन जाएँ और नुक्कड़ पर चले आने का "शौक" भी "बाकी शौकों" में जाता रहे जैसा की आम तौर पर सरकारी मदद याफ्ता, तरक्की पसंद संपादक मित्रों का होता है, और भी "काम" हैं, नया क्या है इसमें, क्यों यार मूसलों में सर डलवाते हो, खुद भी और हमें भी घसीटते हो, टाइप "प्रबुद्ध संवादों के माध्यम से" निर्लज्ज व्यवहार कुशलता का मुफ्त ज्ञान बांचते हुए...   

एक तरफ अंधे हिन्दू वेद-पुरानों के अर्थ का अनर्थ कर उनके अनुवाद, संवाद, विवाद में जीवन को धन्य बनाने में लगे हैं, बहरे मुसलमान फारसी में नमाज की अजान बिना अर्थ जाने समझे सुन रहे हैं, भिखारी ईसाईयों को सिर्फ और सिर्फ धर्मांतरण से प्रेम हो गया है, बनिए के आधुनिक "अवतार" कभी जुझारू सरदार "चिकन टिक्के" पर हाथ साफ़ कर "व्हिस्की" पीकर ई एम आई की बदौलत महंगी गाड़ियों के कानफोडू फाल्स "फोल्क" पर भांगड़ा पा रहे हैं और चारों तरफ शब्द नाद है "सत श्री अकाल"

दूसरी तरफ "पगला मंसूर," "सूफियों" ने झूठे हस्ताखर करने को "मौलवियों" के लबादे ओढ़ लिए हैं "सत श्री अकाल" समयवाह होकर अपना अर्थ खो चुका हैमीडिया नुक्कड़ बस एक काल्पनिक जगह है कुछ भटके हुए मुसाफिरों की...अल्लाह कुफ्र से बचाए...पर अब यहाँ आने में भी डर लगता है, कैसे कैसे लोग मिल जाते हैं इससे पहले की शब्द अर्थ खो दें... एक बार फिर जेहन में रख लूँ "सत श्री अकाल" मनमोहन है "पा" जी!!! 

दूर मीडिया नुक्कड़ पर "पगले शायर" की फैज और मंसूर की मिली जुली याद लिए ठण्ड से लहराती आवाज आई...

लाजिम है की हम भी देखेंगे,
वो दिन के जिसका वादा है,
जो लौह-ए-अजल में लिखा है,
जब जुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जायेंगें!!!
जब ताज उछाले जायेंगे,
सब तख़्त गिराए जायेंगे 
उट्ठेगा "अनहलक" का नारा 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो !!!
और राज करेगी खल्क ए खुदा,
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो !!!
उट्ठेगा "अनहलक" का नारा,
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो !!!
***Note: Dear Reader Kindly Read "सत श्री अकाल" मनमोहन पाजी as "सत श्री अकाल" मनमोहन "पा" जी else "सत श्री अकाल" मनमोहन है "पा" जी

1 comment:

  1. first and for most ,thanks for inviting me to this blog.its really a treat for brain and eyes.secondly,punches in the articles are wonderful.

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