Thursday, March 10, 2011

मरणोपरांत महान "अर्जुन सिंह"


मीडिया नुक्कड़ पर टिप्पणियों से भरा एक दिन..किसी ने बात छेड़ दी अर्जुन सिंह नहीं रहे...बस टिप्पणियों और उन पर टिप्पणियों का दौर शुरू...
  
एक्टिव नहीं मियां "रेडियोएक्टिव" अर्जुन सिंह नहीं रहे, पर रेडिएशन (के दुष्प्रभाव अभी भी) हैं, हमेशा रहेंगे, भोपाल (और शायद इस देश ) के जेहन में, और रहा सवाल हमारा, तो हमें तो मियां भूलने की बीमारी है !!!

अर्जुन सिंह जैसे नेताओं को जानने के लिए उनके तमाम कारनामे जानने की  आवश्यकता नहीं...एन्डरसन (भोपाल गैस काण्ड के मुख्य अभियुक्त)  को भारत से भागने में अहम् योगदान के लिए वे जाने जाते हैं. इसके अलावा उन्हें लाशों पर राजनीती करने वाले एक्टिव (बल्कि "रेडियोएक्टिव") महान राजनेता की संज्ञा से भी जाना जाता है. 

एक वरिष्ठ साथी फेसबुक पर लिखते हैं, और भड़ास पर उनके लिखे पर लोग टिपण्णी करते हैं, उनका मानना है की ... हुआ वही जो अर्जुन सिंह ने चाहा (या फिर अर्जुन सिंह ने वही चाहा जो होना था) कहते हैं , "अच्छा लीडर वो नहीं जो वो कहे/करे जो वो चाहता है, बल्कि वो है जो वो कहे/करे जो जनता (जनार्दन) चाहती/कहती हैं" 

पढ़ कर... बहुत दुःख नहीं बल्कि शर्म आती है, की भोपाल गैस काण्ड के समय प्रदेश के मुखिया होने के बावजूद, भीषण अपराधियों को अपनी चाटुकारिता (कांग्रेस के प्रति)साबित करने हेतु, अपने(परिवार विशेष) आकाओं  के इशारे पर सुरक्षित (अमेरिका) भगाने वाले महान पुरुष का जिक्र चल रहा है और हमारे वरिष्ठ साथी (उनका ये नाम याज्ञवलक्य वशिष्ठ, इत्तफाकन नहीं हो सकता, शायद हमें मिलना ही था "मकतब" IT IS WRITTEN ) व अन्य सिर्फ "हल्की-फुल्की" तारीफ कर रहे हैं.

एक कथा है... राजा जनक ने महर्षि याज्ञवलक्य से पूछा, 'महात्मन्, बताइए एक व्यक्ति किस ज्योति से देखता है और काम लेता है?' याज्ञवलक्य ने कहा, 'यह तो बच्चों जैसी बात है महाराज। हर व्यक्ति जानता है कि मनुष्य सूर्य के प्रकाश में देखता है और उससे अपना काम चलाता है।'जनक बोले, 'और जब सूर्य न हो तब?' याज्ञवलक्य बोले, 'तब वह चंद्रमा की ज्योति से काम चलाता है।' तभी जनक ने टोका, 'और चंद्रमा भी न हो तब?' याज्ञवलक्य ने जवाब दिया, 'तब वह अग्नि के प्रकाश में देखता है।' जनक ने फिर कहा, 'और जब अग्नि भी न हो तब?' याज्ञवलक्य ने मुस्कराते हुए कहा, 'तब वह वाणी के प्रकाश में देखता है।' जनक ने गंभीरतापूर्वक उसी तरह पूछा, 'यदि वाणी भी धोखा दे जाए तब?'याज्ञवलक्य ने उत्तर दिया, 'तब मनुष्य का मार्ग प्रशस्त करने वाली एक ही वस्तु है -आत्मा। सूर्य, चंद्रमा, अग्नि और वाणी चाहे अपनी आंख भी खो दें पर आत्मा तब भी व्यक्ति के मार्ग को प्रशस्त करती है।' इस बार जनक संतुष्ट हुए।

ऐसे थे "उस समय" के याज्ञवलक्य "आउट डेटेड पीपल" वो तो गनीमत है, तब कोई फेसबुक नहीं थी, मिलजुल कर ही दर्शन आगे बढ़ता था !!! 


लानत भेजो पुरानी मान्यताओं को, वर्तमान ब्लॉग/इन्टरनेट और तकनीक की इस आपाधापी भरी जिंदगी में समय निकाल कर बस ये समझ लो की अर्जुन सिंह बस सरदार नहीं थे, वर्ना इस समय इस देश के प्रधानमंत्री होते, फिर नियति का क्या, समय ही आ गया जब...

अच्छे अच्छे नहीं रहे...ये अर्जुन सिंह किस (कांग्रेस) खेत की मूली हैं...थोड़े दिनों में मनमोहन भी नहीं रहेंगे "देख लेना"  और हाँ हम कोई ज्योतिषी नहीं हैं भैया युंकी, यूँही निकल रहे थे मीडिया नुक्कड़ से तो कान में आवाज पड़ी सो ही लिख रहे हैं...

उन्हें स्वर्ग ही मिलेगा...... अमर रहेंगे अर्जुन.... अर्जुन तुम्हारी बहुत जरूरत है, फिर पैदा हो.... भारत में...

मेरा मानना है भारत ही नहीं वैसे इस समय दुनिया के (लीबिया, मिश्र, अमेरिका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक...महान भारत देश को छोड़कर सभी के, राजीव शर्मा और मौलाना, अलग होकर भी साथ साथ हैं) हालात हैं, विश्व के तकरीबन हर दूसरे देश में ऐसे "मरणोपरांत (महान)" पुरोधाओं की जरूरत है...नाम ही क्या कम है "अर्जुन"  फिर उस पर सबसे जरूरी योग्यता "सिंह" "अर्जुन सिंह" "अ" मर रहे !!!

(मैंने सोचा उपरोक्त टिप्पणी हमारे राजीव भैया की है, फ़ोन किया तो बोले "बहुत हो गए हैं यार, राजीव शर्मा"  अर्जुन सिंह जैसे "******" को मैं ऐसे थोड़े ही लिखूंगा, हमने मन ही मन परमपिता परमेश्वर को मित्रता सलामत रखने के लिए दुआ दी, वर्ना गलत सोचना तो शुरू कर ही दिया था की, तीन तीन महीने तनख्वाह देरी से मिलने के बावजूद, पूरे "चेनल" का  दारोमदार वो भी पूरे एक साल से अकेले उठाते हुए कहीं, कांग्रेस की तरफ रुझान तो नहीं...खैर बहला हो मोबाईल फ़ोन का,  और हाँ क्रेडिट कार्ड का भी वर्ना बिल देना मुश्किल होता" 
थोडा आगे बढे तो एक पुराने "भोपाली" दोस्त मिले बोले जानते हो सुधीर भाई (हमने मन ही मन कहा, कहाँ मियां, हम कहाँ कुछ जानते हैं? दुनिया भर की "(वाहियात) न्यूज" तो आप देते हैं हमें, हम तो "इग्नोरेंस इज ब्लिस " वाली दुनिया में आमतौर पर रहते हैं, जब तक कोई प्रिय घसीट ही न ले) बोले मियां, "सिंह" आजकल मिश्रा, दुबे और चौबे से आगे हो गए हैं, कायस्थों, यादवों, अहिरों के कान काट रहे हैं, जब बोले आप जो गौतम लिखते है, वो भी यहाँ तो "******" होते हैं, हमारा खून खौल गया और हमने "शांति से" (सभी मित्र जबसे हमें ठेके वाले पंडित जी की, थाने के दारोगा के कानूनी "सरंक्षण" के बावजूद उसी के "ठीये" पर  जूता-पिटाई की है, "शांतिनाथ" कहते हैं, ये नाम जब से मिला, जीवन ही बदल गया, जैसे "ALCHEMIST" का) गडरिया, हमने तो कह दिया "अमां कभी तो टुच्चे  "क्षेत्र-वाद", "जाती-वाद" से ऊपर उठो, हमें नाहक घसीट लेते हो ? 

खैर मुद्दे से भटक जायेंगे, क्योंकि "सात खून माफ़ में "रघुवीर भाई" (खुद ही सवाल सोचना, और खुद ही जवाब देना ) का काम भी काफी अच्छा लगा है हमें (वो कभी बाद में)  

फिलहाल उपरोक्त टिप्पणियां दिवंगत अर्जुन सिंह जी को को थोडा बहुत जानने  के लिए पर्याप्त हैं...पूरा तो हम खुद स्वयं को भी नहीं जान पाते जो हमेशा खुद के साथ रहते हैं , यशवंत भाई की क्या कहें, जो मन से पुराने "जनवादी" होकर भी न ही मौत के मुहाने पर खड़े महान सरदार "मनमोहन सिंह" के लिए मेरे उद्गारों को ("सत श्री अकाल" मनमोहन पाजी" ) (ईमेल द्वारा निवेदन के बावजूद, की छाप दो भैया ज्यादा लोग लुत्फ़ उठा लेवेंगे ) कोई स्थान देने में उत्सुक हैं,न ही अर्जुन "सिंह" के बारे में मेरे उदगार छापेंगे, रिप्लाई जरूर कर देते हैं badhiya likha hai ji. मुझे भी अच्छा लगता है, क्योंकि मैं भी सिर्फ बढ़िया लिखने में ही उत्सुक हूँ, वो भी कभी कभी, बाकी टाइम तो महान लोगों को करीब से जानने में निकलता है, जीविका अर्जित करते हुए !!!

फिर मृत्यु के बाद तो वैसे भी अच्छा ही कहने की परंपरा है तो अर्जुन जी को भी अधिक लोग जान सकें इसलिए आप सभी से सीधा निवेदन है की इस "पोस्ट" अधिकाधिक संख्या में लोगों तक पहुंचाएं, ताकि मृतक महान और उससे किसी भी माध्यम से जुड़े लाखों लोगों की आत्मा को शांति मिले (सुना है सरकारी गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ कई हजार लोग मरे थे, तुरंत और उसके बाद कई सालों तक, बल्कि दो दशक गुजर जाने के बावजूद भी लोगों के जेहन में वो महक जिन्दा है, अभी भी... )
एक साथी लिखते हैं... उधर उन्हे कांग्रेस की नयी कमिटी में स्थान नहीं दिया गया इधर दिवंगत हुए अर्जुन. खैर. मृत्यु के बाद अच्छी बात ही कहने की परंपरा है और होनी भी चाहिए लेकिन अफ़सोस अर्जुन सिंह ने अपने कुर्सी लोभ और कर्मों से अपना इहलोक काफी कलंकित कर लिया था. कोई भी अच्छी बात याद नहीं आ रही है जिसे कहा जाय. और परलोक की बात गोलोकपति जानें!!!


दूसरे साथी लिखते हैं ...हालांकि मैने अर्जुन सिंह जी की कभी प्रशंसा भी नही कि लेकिन आज उनकी मौत से मैं बहुत दुखी हूं , लगता है इस देश ने एक अच्छा नेता खो दिया , अपनी सारी खामियों के बावजूद अर्जुन सिंह एक अच्छे नेता थें। मेरी श्रंद्धाजली है उन्हे ।

हम कहते है भैया क्या कहना कहते हो क्या "सदमा" लग गया (आपको नहीं, उन्हें, जिस महान आत्मा की बात चल रही है हर तरफ)? आपने तो भारतीय सांस्कृतिक और "बालीवुड़ी" दोनों परम्पराओं का यथोचित निर्वाह किया. "शोले" के धरम पा जी याद दिला दी, कोई भी "अच्छी बात न होने के बावजूद" अपने "अर्जुन जी" को "सही जगह पर" "श्रंद्धाजली" दी, बाकी गोलोकपति जी जानेगे ही, ये तो हम-तुम छोटे लोग हैं कि यहीं सब हिसाब देना है, पुलिस को, क़ानून को, घर परिवार, दोस्त यार, मोहल्ला तो सीधे रहते हैं, बड़े लोगों का हिसाब तो ऊपरे न होगा भैया ?"

मुबई जाते वक्त एअरपोर्ट पर (पहली बार हवाई जहाज में चढो तो सब को बताना पड़ता है, सुना है उंचाई का डर निकल जाता है, फिर आदमी ढीठ बन कर आराम से आ-जा सकता है) एक अपने कांग्रेसी भाई (मैडम के और राहुल बाबा के करीब हैं, "अमेठी" से जो हैं) (बातचीत से पता चला कि पहले कालेज तक कम्युनिस्ट टाइप थे, बहुत नुक्कड़ नाटक किया, झोला लेकर) मिले, बोले भैया नाम बढ़िया रखे हो "मीडिया-नुक्कड़" पर "भड़ास" नहीं निकालोगे तो चलेगा नहीं...(हमने निर्दिष्ट को भाव दिया, और कोने में बैठा लिया, ऐसे सद्वचन पैसा-कौड़ी खर्च कर के भी कहाँ मिलते हैं ) जोर देकर (कुछ निगला शायद भीतर, और फिर) बोले... 

अर्जुनवा गया, जितना मुंह उतनी बात... अब बताओ... अगर कोई अपने "सत्तू भैया" सतीनाथ सारंगी" से पूछै , तो छूटते कहेंगे  "रेडिएशन" का "रिएक्सन" है.
पच्चीस साल से बुडबक (या फिर बकलंठ, या बक**द ऐसा ही कुछ बोले ) कुछ और बाते नहीं करता है भाई, बढ़िया टेक्नीकल पढाई-लिखाई (हमने कहा एम टेक, तो बोले हाँ वही ) सबै छोड़-छाड़ कर "कौनो अमेरिकेन कम्पनी"  के पीछे पड़े हैं, (नाम बढ़िया है भैया, थोडा बताया था न, यादाश्त का "सिकायत" है , शायद DOW), भाड़ में जाएँ, आखिर इनको "देस का" का चिंता है...एक "अर्जुन" रहें, अब वो भी गए, शरद का देखै रहें हैं, मुंह "बिचका" हुआ है, प्रणब "बंगालिये" हैं, किसी का नहीं होता (हमने आँख बिचकाई तो मान जाओ हम कहते हैं वाला नोसन दिया ), राहुल बाबा अभी "छोटे" हैं, हमका कौनो देखबे न करै, "मैडम" का जाने रहे हो, ई "सुब्रमनियम" कितना झंझट फैला दिया है, इन्टरनेट पर किसी ट्यूब तक पर बहकाता है,  "बिदेसी" है, तो का हुआ? जीभ लपलपा लेत हैं, जहाँ देखियें, कामनवेल्थ तक में हम देखे,साथे बैठे थे, कुछ तो मिला नहीं बस "चीयर-लीडर" बने ताकत रहें, बिना खुसबू का लिए हुए, प्रधानमंत्री नहीं चलेगा और सब "बिदेसीये"  चाहिए,  संकीरण मानसिकता एही का कहत हैं, भुगतो, मैडम तो दो तरफ खेला खेलीं,सरदार से "जग हंसाई" करवा रहे हैं अब, इ पार्टी तो गया, अपने राय साहब से मिलवा दो भैया पार्टी में दम नहीं रहा अब !!!  


एक ने तो हद ही कर दी...उनके उदगार थे अर्जुन सिंह जी जैसे लोगों को "आदर्श" का दर्जा देना नयी पीढ़ी के सामने अपना मुंह काला करवाने जैसा हैं...हमारे मित्र संजय से रहा नहीं गया कूद ही पड़े, भागलपुर के जो हैं ...आप कितना जानते हैं नयी पीढ़ी को? नयी पीढ़ी का आदर्श यही लोग हैं, खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे, कहाँ नहीं है करप्सन? इन्टरनेट का जमाना है, लंगोटे पहने हो, जितने में पूरा लपेटे हो उतने का "जाकी" पहने हैं, कोई समझ है तुमको, नौकरी गया, यार दोस्त सब हँसते हैं तुम्हरा पीठ पर, आप जैसे मूर्धन्यों को "चू**या" समझता है नयी पीढ़ी, सामने तो हर कोई सलाम करता है,  तुम का जानो जब कोई पूछता है "आजकल कहाँ हो" इसका "का मतलब" है, जब देखो एकै बात, जब "सत्ता के खिलाफ षड़यंत्र में"  पुलिस का डंडा पड़ेगा... हवालात कि हवा लगेगी...कोरट कचहरी देखोगे,  तब जानोगे... अभी इहाँ से खिसको... और कल से अपना ठिकाना देख लो, इहाँ (मीडिया नुक्कड़ पर ) पहले बहुत बासी हवा है...देस का आगे जाना है, मीडिया को भी साथ जाना होगा, लाइसेन्स है, डी ए वी पी  का ऐड है, इलेक्सन का है, कागद  है, स्याही है, कौनो ब्लॉग नहीं, नाही वेबसाइट जो मन करे लिखो, वैसे अमेरिका का देखै रहो हो, इहाँ भी तुम लोगों का जल्दिये नंबर आने वाला है...

संजय भाई का अचानक बदला रूख देख कर, अपन राम भी धीरे से निकल लिए, आजकल वैसे भी हमारे घर में ही इतनी महाभारत है, बाहर के "अर्जुनो" के क्या चक्कर में पड़ें... पीछे से संजय की आवाज आती रही...सुधीर भाई...रुकिए हम भी आ रहे हैं...साथै चलेंगे... हमने मन ही मन कहा भाड़ में जाओ सब के सब !!!           

    1 comment:

    1. बहुत अच्छे बंधुवर .. एक दम सटीक.. भई मज़ा आ गया.

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