Saturday, November 25, 2017

चुनाव, प्रेस क्लब, लेफ्ट, राइट, यशवंत, राम बहादुर राय, हम

ये देश में चुनावों का दौर है, पुराने नेताओं को हटा कर नए नेताओं को मौका देने का, आजमाने का और नए फिर नए विकल्पों की तलाश का. चुनावों के इस दौर में आज प्रेस क्लब का भी चुनाव है, आमतौर पर किसी भी चुनाव के आने से पहले और ख़त्म हो जाने के बाद भी बहस मुबाहिशों के कोलाहल में डूब जाने वाले भारतीय मीडिया के ऐसे संगठन का जिसमें दाखिल होने और फिर उस पर वर्चस्व के लिए हर तरह के हथकण्डे अपनाने से न चूकने वाले वाले मीडिया कर्मियों के उस संगठन का जहाँ से विचार, विचारक्रम, राजनीति, समाज, वर्तमान, इतिहास और भविष्य के घटनाक्रम और प्रतिक्रियाओं को लेकर भावनाओं, जज्बातों और दिशाओं की एक बयार निकलती है, जो  कभी कभार आँधियों का रूप भी अख्तियार कर लेती है और तय करती है अन्तर्निहित प्रायोजित या सांयोगिक विचारक्रम एवं सामाजिक, राजनीतिक उठापटक.

बवंडर की ये संभावनाएं मजबूर करती रही हैं सरकारों, सत्ताधीशों और उसमें रूचि रख किसी भी तरीके का निवेश करने वाले संगठन एवं व्यक्तियों को की वो ऐसे सभी संस्थानों, मठों को निरंकुश बनायें रखें और अपना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दखल लाजमी रखें. इसमें कितनी सफलता या विफलता मिलती है ये अभी प्रासंगिक नहीं है, प्रासंगिक है तो ये की चुनाव पूर्व प्रेस क्लब की सदस्यता से कई नामी गिरामी वरिष्ठ साथियों को निकाला जाना और कुछ नए साथियों का चुनाव लड़ने का निर्णय लेना, जो की आम तौर पर आयाराम गयाराम सरीखे साथियों और धीमे से गुजर जाने वाले इस चुनाव को अलग कर विचारों, संभावनाओं और विषमताओं के एक गुबार में लपेट लेता है जिस पर एक छोटी सी प्रतिक्रिया थोड़ी लाजमी है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू से लेकर सभी छोटे बड़े चुनावों में चर्चाओं विचारों और आंकलन और मूल्यांकन की बाढ़ ले आने वाला प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह की राजनीतिज्ञ भूमिका में हमेशा की तरह मौन है खैर ये प्रतिक्रिया का ना प्रसंग नहीं है ना ही प्रयोजन अथवा सन्दर्भ।..

प्रसंग है...आमतौर पर विपरीत निरंकुश से बेख़ौफ़, प्राय: विवादों को साथ लेकर चलने वाले, क्रांतिकारी युवा वर्ग के अगुवा, "जानेमन जेल" जैसे वास्तविक उपन्यास को जीने वाले, भड़ास सरीखे मंच की रचना कर मठाधीषों से सीधे भिड़ जाने वाले यशवन्त सरीखे साथियों का  चुनाव लड़ने का निर्णय लेना...जिसमें जीतना या हारना निरर्थक है, सार्थक है लड़ने का निर्णय लेना और उस पर अमल लेकर लोहा लेने की पहल, जो लड़ने का जज्बा खो चुके ना जाने कितने ही पत्रकार और मीडियाकर्मियों तथा इस सन्दर्भ को समझने वाले अन्य साथियों का मनोबल बढ़ाने वाली है. ऐसे मुक्त खानाबदोश परिंदों के लिए...शुभकामनाएं, मनोबल बढे, सफलता मिले, और अंततः अहंकार और ऐसे सत्ता मद से दूर रहें, जो कि आम तौर पर पूर्व में सही परिस्थितियों में पहुंचे साथियों के साथ होता आया है, जिसके विपरीत ये निर्णय लिया गया.
और हम सभी के लिए... एक सोच..."ढूंढ़ उजड़े हुए लोगों में वफा के मोती, ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिले"

प्रसंग है...प्राय: सार्वजनिक व्यवहार में मृदुल, सौम्य किन्तु विचारों एवं मूल्य मान्यताओं की लड़ाई में कलम को घातक हथियार बना सकने की नैसर्गिक क्षमता रखने वाले कई दशकों तक पत्रकारीय मूल्यों का निष्पादन कर स्वयं व्यक्तिगत संस्था बन चुके राम बहादुर राय सरीखे वरिष्ठ साथी जिन्हें दुर्भाग्य से चुनाव पूर्ण निष्काषित किया गया और और अन्य सभी जो अब न लौटने का मन बनाये हैं...ऐसे प्रेरक बाज परिंदो के लिए..."शब्द बाण जो, शूल उसे, क्या व्यथित करें तुम कहो सखा, बस एक ग्लानि ना समझे तुम ये जीवन जो उन्मुक्त जिया"
और हम सभी के लिए... एक सोच..."वो जो सब पर बोझ था इक शाम जब नहीं लौटा, उन्हीं शाखों को परिंद का इंतजार रहा"

सन्दर्भ...आम तौर पर सामान्यतः सभी को लेफ्ट राइट में बाँटने की मनोवृत्ति रखने वाले हमारे समाज और समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले और उसकी लड़ाई को मंच प्रदान करने वाले मीडिया के साथियों से एक सवाल

"वो क्या है जो कॉमन है जीवन को सही मूल्य मान्यताओं के निष्पादन के लिए समर्पित करने वाले व्यक्तियों में यदि आपका जवाब है "जुझारू प्रेरणादायक व्यक्तित्व, सोच, संकल्प, और सार्वजनिक जीवन, समाज से भ्रष्टाचार, अराजकता, निरंकुशता और शोषण को मिटा कर सबके लिए सामान्य अवसर मुहैया करने के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन संबंधों की आहुति किसी विचारधारा के तहत या उससे अलग मूल्यों, मान्यताओं और उचित मानदंडों की रक्षा" तो आप यक्ष प्रश्न योग्य हैं"

विचारधारा के तल पर क्या है लेफ्ट और क्या है राइट, ये किससे लेफ्ट और किससे राइट है क्या वाकई कोई ऐसी विचारधारा भी है? क्या ये वर्गीकरण समसामयिक है?

किसी भी तरह की उहापोह के लिए स्थान ना रखें खुलकर विचार करें, प्रश्न रखें, सुझाव भी ताकि बहस मुबाहिशों का ये दौर जारी रहे जब भी समय मिले।।।

और अंत में गतिविधि: अपने आस पास नजर दौड़ाएं और ढूंढें लेफ्ट में राइट और राइट में लेफ्ट और तय करें देश समाज और हम सभी को जरूरत है एक नयी सोच की, नए विकल्पों की, मूल्य और मांन्यताएँ जो पुराने हो चुके हैं उनमें बदलाव की, यदि ये बदलाव सकारात्मक है तो उसको उचित मान्यता देने की और यदि नकारात्मक है तो उसमें और बदलाव की, पर ये दौर है कुछ कर गुजरने का अन्यथा ये जीवन यूँ भी तो गुजर ही जाना है।।।

समय निकाल कर पढ़ने के लिए और विचारक्रम को जीवित रखने हेतु सभी को साधुवाद।।।

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